मां......
बेटी से मां तक के सफर में,
वो खुद के सफर में चलना ही भूल गई।
उलझे इन रिश्तो में,
वो खुद से खुद का रिश्ता बनाना ही भूल गई।
सपने तो कई बुने थे उसने भी
पर अपनो के सपनो को पूरा करते करते,
वो खुद का सपना पूरा करना ही भूल गई।
अपनो के लिए जीते जीते,
वो खुदके लिए जीना ही भूल...
वो खुद के सफर में चलना ही भूल गई।
उलझे इन रिश्तो में,
वो खुद से खुद का रिश्ता बनाना ही भूल गई।
सपने तो कई बुने थे उसने भी
पर अपनो के सपनो को पूरा करते करते,
वो खुद का सपना पूरा करना ही भूल गई।
अपनो के लिए जीते जीते,
वो खुदके लिए जीना ही भूल...