अपनी अपनी कहानी
अपनी अपनी कहानी कहना सब
चाहें मगर लब्ज कम पड़ जाते हैं!
उधेड़ बुन की कश्म कश मे फंस
कर सब रह जाते हैं!
जिससे सुनो खुद को सच्चा बताता है,
न जाने कौन हैं वो जो झूठे कहे जाते हैं!
अलग अलग कोनो मे बैठे अपने क्या
सोच रहे, कोई भी तो समझ न पाए,
ये रिश्ते कमजोर पड़ जाते हैं!
हर वक़्त खुद की एहमियत जताने मे
ये अपने रह जाते हैं!
जाने क्यों फासला सा हो गया है अब...
चाहें मगर लब्ज कम पड़ जाते हैं!
उधेड़ बुन की कश्म कश मे फंस
कर सब रह जाते हैं!
जिससे सुनो खुद को सच्चा बताता है,
न जाने कौन हैं वो जो झूठे कहे जाते हैं!
अलग अलग कोनो मे बैठे अपने क्या
सोच रहे, कोई भी तो समझ न पाए,
ये रिश्ते कमजोर पड़ जाते हैं!
हर वक़्त खुद की एहमियत जताने मे
ये अपने रह जाते हैं!
जाने क्यों फासला सा हो गया है अब...