...

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के अब जो तुम नहीं हो, तुम्हारी याद बहुत आती है!!
के अब जो तुम नहीं हो, तुम्हारी याद बहुत आती है,

अक्सर सवेरों से बच के निकलता हूं,
रात की तन्हाईयो में चुपके से खुद से मिलता हूं,
अंधेरों की दहलीज़ मुझे हर दम अपनाती है,
अब जो तुम नहीं हो, तुम्हारी याद बहुत आती है,

मैं ज्यादा बोलता नहीं था, ये तो मालूम था तुम्हें,
एक दूसरे से कहने की जरूरत शायद नहीं थी हमें,
क्या था मन में तुम्हारे, मुझे रह रह के ये बात सताती है,
अब जो तुम नहीं हो, तुम्हारी याद बहुत आती है,

आज भी अपने ख्यालों में तुमसे रुठ जाता हूं,
तुम्हारी तस्वीर के सामने कभी कभी टूट जाता हूं,
फिर मां हाथ थाम के मुझको समझाती है,
अब जो तुम नहीं हो, तुम्हारी याद बहुत आती है,

हम दोस्त थे तुमने कहा था, दोस्ती निभाने की उम्र तो अभी शुरू हुई थी,
तुमको सुनाने को मेरे पास कहानियां कई थी,
अब तो दिल की आह भी ख़ामोशी में सिमट जाती है,
के अब जो तुम नहीं हो, तुम्हारी याद बहुत आती है!!

© Rohit Kumar Gond
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