कोशिश ज़िन्दगी की..
ऐ मरहूम ज़िन्दगी!,
तूं किस गफलत में पड़ी है।
सागर की गहराई को,
लहरों से नापने चली है।।
अगर चुप हूं तो,
इसे मेरी खामोशी मत समझना,,
मुझे तो अभी किनारे की पड़ी है।।
लाख कोशिश कर ले तूं,
मेरे कदम डगमगाने की,,
मुझे तो बस अपने रहनुमे की पड़ी है।।
तूं रहम कर या ना कर...
तूं किस गफलत में पड़ी है।
सागर की गहराई को,
लहरों से नापने चली है।।
अगर चुप हूं तो,
इसे मेरी खामोशी मत समझना,,
मुझे तो अभी किनारे की पड़ी है।।
लाख कोशिश कर ले तूं,
मेरे कदम डगमगाने की,,
मुझे तो बस अपने रहनुमे की पड़ी है।।
तूं रहम कर या ना कर...