...

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दोस्ती या मोहब्बत
तू दोस्त है या मोहब्बत ये अभी राज़ है!
तू हमसफ़र है मेरा बस इतना काफी है।

मेरे बाल पकड़ कर वो खींचता है....
फिर भी मुझे वो प्यारा है,
मोहब्बत का तो पता नहीं....
पर वो दोस्त बड़ा ही प्यारा है,

मै उसके मुंह का निवाला छीन कर खाती हूं....
फिर भी मेरे साथ ही वो खाता है,
उसने इश्क़ का इज़हार तो कभी किया नहीं....
पर दोस्ती बड़ी शिद्दत से निभाता है,

मेरा हाथ थाम कर वो नहीं चलता....
फिर भी गिरने से बचाता है,
प्यार की कस्में तो कभी खाई नहीं....
पर दोस्ती के वादे हर बार निभाता है,

मोहब्बत का एहसास तो कभी ना हुआ था....
लेकिन आज उसने दोस्ती में गले लगाया था,
और पहली बार....
उसके दिल की धड़कन में नाम मैने अपना सुना था....
शायद पहली बार उस दिन मोहब्बत का एहसास हुआ था।

बोलने से कतराती थी कहीं दोस्त भी ना खो बैठूं....
लेकिन उसने इश्क़ का इज़हार किया,
और उस दिन मैंने हा कहा था....
लेकिन हमने उस दिन दोस्ती को मोहब्बत में नहीं,
मोहब्बत को दोस्ती में तब्दील किया था।

तू दोस्त है या मोहब्बत ये अभी भी राज़ है!
तू हमसफ़र है मेरा बस इतना काफी है।


-दिव्या चौधरी