...

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"अधुरी ख्वाहिश"
न तख्त की ख्वाहिश थी,
न कब्र की शिकायत थी।
आरजू थी तो बस एक मोहलत मिले,
तेरे साथ के ओ मेरे दो पल बिताने की।
थे तो तुम कहनेको,
हर पल मेरे करीब।
पर साथ होकर भी,
हम तेरी परछाई को तरसते थे।
गुनाह था बस एक हमारा,
कियी थी जो सिद्दत से मोहब्बत तुमसे।
पर पाकर भी हम तुमको,
सारे जहाँ में अकेले रह गए ।
ये वक्त की दुरबत थी,
या मेरी तकदीर की बेवफाई।
जो जिंदगीभर की चाहत थी मेरे,
वो जनाजे पर मेरे दो पल रोयी थी।





© Shivaji