...

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अब उनसे क्या नज़रे चुराना
अब हकीक़त में उन से क्या नज़रें चुराना,
जिनका ख़्वाबों में हर पल हो आना जाना।
अब उनसे क्या नजदीकियों की उम्मीद लगाना,
जिनकी फितरत में हो मिलन से ही पहले दूर हो जाना।
अब क्या ही उन्हें अपनी मंज़िल बनाना,
जिन्हें आता है यूं ही किसी को भी बीच राह में छोड़ कर चले जाना।
जिसने हमें ही अधूरा कर दिया, अब उस मोहब्बत को पूरा करने के क्या सपने सजाना।

© Anurag Dubey
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