"फूल का असल वजूद",,,
काटों के बीच पलता,
भूल बैठा था उसूल,
कि खुद नहीं था वो काँटा,
दरअसल था एक फूल,,
चुभने की, की कोशिश उसने बहुत,
मगर ये मुमकिन न था,
काँटों में रहकर भी,
फूल बनना उसकी फितरत का हिस्सा था,,
काँटों को वो अपना दोस्त समझ बैठा,
उनके जैसा बनने में खुद को भूल...
भूल बैठा था उसूल,
कि खुद नहीं था वो काँटा,
दरअसल था एक फूल,,
चुभने की, की कोशिश उसने बहुत,
मगर ये मुमकिन न था,
काँटों में रहकर भी,
फूल बनना उसकी फितरत का हिस्सा था,,
काँटों को वो अपना दोस्त समझ बैठा,
उनके जैसा बनने में खुद को भूल...