...

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वहां सिर्फ आग लगायी जाती हैं
जिसे खुद की गलती ना दिखती हो
गुस्सा इतना की बाजारों में बिकता हो
गुस्सा क्या होता हैं
इंसान जगते जगते सोता हैं
ना उसकी बातों में परिपक्वता हो
ऐसा इंसान कैसा इंसान जो अपने क्रोध में जीता हो
जिंदगी भर सिर्फ क्रोध ही पीता हो
वहां ना कोई फिर ज्ञान की बात बतायी जाती हैं
वहाँ सिर्फ आग लगाई जाती हैं

अरे खुद को तुम धर्म ग्याता मानते
अरे दूर शहरो की खाक छानते
क्रोध को काबु करना ना सीखा
अपनी बुराई को सुनना ना सीखा
तो फिर तुमने क्या सीखा
तुम्हारा प्रभु दास बनना
रह गया फीका

बोलना तुम्हें आता ना
तमिज नाम की चीज नहीं
क्या मैं गलत और तुम ही सही
समझदारों को सिर्फ एक बार
ही ये बात बतायी जाती हैं
तो फिर भी ना समझे
तो वहां आग लगाई जाती हैं

जब बुद्धि हर जाती हैं
तब मनुष्यता सोता है
मैं फिर कह रहा हूँ
चिंगारी का खेल बुरा होता हैं
चिंगारी का खेल बुरा होता हैं.
समझदारों को सिर्फ एक बार
ये बात बतायी जाती हैं
यदि फिर भी ना समझे
तो वहां आग लगाई जाती हैं
वहां आग लगाई जाती हैं.

© Yeshu