...

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शब्दो की अनकही
कुछ बोले बिना ही वो सब कुछ कह गया था ...
उसके होठों की खामोशी ही पूरी कहानी बता रही थी ...
लफ्ज़ खामोश थे शब्दो की बाते थी ...
उसके शब्द सब कुछ कहकर भी कुछ ना कह गए थे ...
उसके शब्द बड़े ज़ालिम थे जरा दिल को लग गए...
अब न उनके शब्द रहे ना हमारे शब्द रहे ...
अब ना कोई बाते हुई ना कोई अंदाजे गुफ्तगू रही ...
उन्हें मोहब्बत की लत थी और हमे दोस्ती की शर्त थी ...
नाराजगी उन्हे भी आती थी , पर हमारी तो कुछ जायदा ही ज़ालिम थी ...
मैं उसके सन्नाटे के राज खोजती तो वो मेरे ज़िद से वाकिफ तक नही ...
मेरी ज़िद भी कमाल की निकली ...अब तू था तब तो बहुत कुछ था ... अब नही तो कुछ भी नहीं ...
उसने मोहब्बत की लत में दोस्त खोया ...और मैने ज़िद की शर्त में उसको खोया ...
कहानी ने भी मोड लिया... उसके शब्द कहकर भी कुछ ना कह गए .... और मेरी कहानी शब्द की अनकही सी बस चलती रही ।

-sanju mei