अकेले जाना चाहती हूं।
कुछ दिन कहीं अकेले जाना चाहती हूं,
किसी और से नहीं बस खुद से मिलना चाहती हूं,
कुछ खास बचा नहीं ज़िन्दगी में मेरी
अब ये मान लिया है,
जो बची है ज़िन्दगी उसे बस जीना चाहती हूं,
कुछ दिन कहीं अकेले जाना चाहती हूं।।
चलते हुए राहों पर कई बार गिरूंगी जानती हूं मैं,
हिम्मत है मुझमें अभी कुछ ठोकरें खाना चाहती हूं,
और पलक जब भी झपकती है मेरी, सच्चाई दिखती है उतनी दफा मुझे,
जिन राहों को तुम मेरी दुनिया बोलते थे,
बस यूं राहों को झुठलाना चाहती हूं
कुछ दिन कहीं अकेले जाना चाहती हूं।।
ख़त्म करना है...
किसी और से नहीं बस खुद से मिलना चाहती हूं,
कुछ खास बचा नहीं ज़िन्दगी में मेरी
अब ये मान लिया है,
जो बची है ज़िन्दगी उसे बस जीना चाहती हूं,
कुछ दिन कहीं अकेले जाना चाहती हूं।।
चलते हुए राहों पर कई बार गिरूंगी जानती हूं मैं,
हिम्मत है मुझमें अभी कुछ ठोकरें खाना चाहती हूं,
और पलक जब भी झपकती है मेरी, सच्चाई दिखती है उतनी दफा मुझे,
जिन राहों को तुम मेरी दुनिया बोलते थे,
बस यूं राहों को झुठलाना चाहती हूं
कुछ दिन कहीं अकेले जाना चाहती हूं।।
ख़त्म करना है...