...

16 views

अकेले जाना चाहती हूं।
कुछ दिन कहीं अकेले जाना चाहती हूं,
किसी और से नहीं बस खुद से मिलना चाहती हूं,
कुछ खास बचा नहीं ज़िन्दगी में मेरी
अब ये मान लिया है,
जो बची है ज़िन्दगी उसे बस जीना चाहती हूं,
कुछ दिन कहीं अकेले जाना चाहती हूं।।

चलते हुए राहों पर कई बार गिरूंगी जानती हूं मैं,
हिम्मत है मुझमें अभी कुछ ठोकरें खाना चाहती हूं,
और पलक जब भी झपकती है मेरी, सच्चाई दिखती है उतनी दफा मुझे,
जिन राहों को तुम मेरी दुनिया बोलते थे,
बस यूं राहों को झुठलाना चाहती हूं
कुछ दिन कहीं अकेले जाना चाहती हूं।।

ख़त्म करना है मुझे वो अपना कमज़ोर सा किरदार,
उस पुराने आइने से भी मुंह मोड़ना चाहती हूं
वो सब लम्हें- किस्से, बारिश और चाय फिर याद आयेंगे मुझे,
पुरानी यादें भूलना नहीं, बस उन्हें दुबारा अकेले जीना चाहती हूं,
कुछ दिन कहीं अकेले जाना चाहती हूं मैं।।

मन्नतों से अब डर लगता है, कहीं सच ना हो जाए,
कोशिशों में मेरी कहीं कमी ना रह जाए,
यूं तो टूटे है बहुत से ख्वाब कई बार,
डर लगता है ये निगाहें बस नए ख़्वाब देखने से ना रह जाए,
कुछ ज्यादा दोस्त नहीं है अब,
अब लोगों से थोड़ी कम पहचान रखती हूं,
होंठो पे कभी सच्ची तो कभी झूठी सी मुस्कान रखती हूं,
अब तो ज्यादा नाराज़गी भी नहीं होती किसी से,
खास कोई नहीं मेरा सबकी आम रखती हूं,
अपनी तन्हाई में कुछ वक़्त अकेले खो जाना चाहती हूं,
किसी और से नहीं बस खुद से मिलना चाहती हूं,
कुछ दिन कहीं अकेले जाना चाहती हूं मैं।।।।
@priya