...

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मनमोहिनी
मनमोहिनी

हे मनमोहिनी! तुम कौन हो?
जो तुम्हारे मुखमंडल के तेज़ से
ये जग प्रकाशित हो रहा है।
सुंदरता की पराकाष्ठा
एवं सौम्यता की सीमा लगती हो देवी
तुम कौन हो।

कोई दैवीय माया हो , अथवा वहम हो।
ब्रम्हचारियों के ब्रम्हचर्य को भी नष्ट करने वाली
तुम्हारी मुस्कान क्षीण कर रही है मेरी सहनशक्ति को।

सुंदरता की ऐसी छवि
ईश्वर की रची ऐसी मूरत,अन्यत्र कहीं नही देखि ।
तुम्हारा ये दूध से भी गोरा रंग,रक्त से लाल तुम्हारे होंठ,
चँचल करती तुम्हारी आँखें,
अप्सराओं को भी लज़्ज़ित करती,
तुम्हारी ये भाव भंगिमाएँ,
मुझे मंत्रमुग्ध कर रही हैं ।
हे गौरा,हे सुंदरी
तुम कौन हो ?

मेरे नयन बार बार तुम्हारे दर्शन
को लालायित होते हैं।
तुम्हारी ये मधुर वाणी अब तक,
कानो में रस घोल रही है।
हे मृगनयनी! मेरी तृष्णा शांत करो।
अपना परिचय दो सलोनी
तुम कौन हो?