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उफ्फ ये मंज़र....❤️❤️✍️✍️ (गजल)
तुम देख न पाये गरीब की खोली का मंजर
हमने देखा है रंग बदलती होली का मंजर

हमें उसके दर से खाली हाथ लौटना पड़ा
बहुत निराशाजनक है मेरी झोली का मंजर

रूह कांप गयी नैन बरसने लगे मेरे 'सत्या'
क्या तुमने देखा बिलखती डोली का मंजर

कितने प्यार से सजाई थी जिंदगी की खुशी
भयावह नजर आने लगा रंगोली का मंजर

मिठास किसी के जीवन में रही ही नहीं
है हर तरफ बस कड़वी बोली का मंजर

सब त्योहार समा गये हैं शराब के नशे मे
हमने देखा है हाल बेहाल टोली का मंजर

#खोली- छोटा सा कमरा



© Shaayar Satya