...

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कांड
एक बच्चा डरता है,
की सब कुछ हो जाए,
बस उसका कांड पिता तक न पहुंचे।
पिता डरता हैं,
की ये सारी बाते,
बस लोगों तक न पहुंचे।
लोग डरते हैं,
की ये सारी घटनाएं,
हमारे समाज का अंग न बन जाएं।
इस समाज का,
वो बच्चा,
वो पिता,
वो लोग,
ऐसे तमाम कांड को,
रोज अंजाम देते रहते हैं।
और उनकी सारी यात्राएं,
बस छुपने से छपने तक की हैं।
सिवाय स्वीकारिता के ,
हम सब ऐसे ही हैं।