...

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मेरा मन
बहोत समझाता हूँ मेरे मन को
क्यों उलझाता है तू अपने आपको
के तू अकेला नहीं है इस संसार में
उसके अपनें भी है इस कायनात में
ना इतना तडप के खूद का मन दुखे
ना परेशान हो के हलक में सांस अटके
जो बस में नहीं उसका खयाल छोड
जीतना जद में है उतना ही तू पकड
उसका अपना वजूद है तो हमदर्द भी होंगे
तूने क्या ठेका लेके रखा है जो वो तेरे इर्द-गिर्द होंगे
तू ही कहता है के वो खूश रहे मुस्कुराते रहे
क्या वो दुसरों के साथ दुखी है ? खुश नही है ?
तेरी सोच के हिसाब से चाहत नहीं होती
तेरी मर्ज़ी के हिसाब से दुनिया नहीं चलती

अब कैसे मै समझाऊँ के मै पल पल पल मर रहा हूँ
मरते मरते भी उसकी मै फ़िक्र कर रहा हूँ
चाहत की इंतेहा का ये आलम है
मेरी हर सांस पर अब उनका रहम हैं

© ख़यालों में रमता जोगी