...

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"बचपन"
यूँ तो बचपन सभी का बेस्ट मोमेंट्स से भरा होता है,
लेकिन जब बचपन से युवावस्था में आते है
तो वही बचपन सबसे बुरा लगने लगता है |
क्यूंकि वो फिर कभी लौट नहीं आता|
हम चाह के भी उन दोस्तों से मिल नहीं पाते|
उन यादों को फिर से जी नहीं पाते,
सब अपनी दुनिया बनाने में उस दुनिया को भूल जाते है |
जहां ज़िन्दगी की असल खुशी मिली थी,
जिसमें कोई स्वार्थ नहीं,
सिर्फ प्रेम ही प्रेम|
एक दूसरे की फिक्र,
जज़्बात समझे जाते थे,
हर कोई अपना होता था|
अब कैसे लौटेगा वो बचपन,
परेशां हो जाता हूँ सोच कर |

संग हसना, संग खेलना ,जैसे कोई अलग ही दुनिया थी वो,
जिससे कहीं दूर आ पहुंचे हैं |
इतनी दूर की पीछे पलट कर देखने पर सिर्फ आँखों में आँसू ही नज़र आएंगे |
आवाज़ भी देंगे तो शायद,
कोई सुनने वाला दोस्त नहीं होगा |
अपनी ही आवाज़ अपने दर्द को आँखों के ज़रिये बहा देगी |

नहीं होना चाहते हम समझदार,
हमें वही नादानियाँ, हँसी ठिठोलिया,
वही शैतानियां सही लगती है |
ये सच्ची दुनिया मानो झूठी लगती है,
दम घुटता है,
अजीब सी घुटन हर वक़्त जेहन में होती है |
जाने उस छोटे से पल में
कोनसी ज़िन्दगी जी आये हम,
की अब जीने की चाह बची ही नहीं!!
काश वो बचपन फिर से आ जाये...!!!


© IndoreKeGopal