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उफ्फ... दिसंबर


बचा है जरा सा बाइस का दिसंबर
इन लम्हों को जी भर जियो यारों

ये दिसंबर की सर्दी जरा सी नरम है
आगे कुहासे भरी जनवरी का सितम है

नवंबर की जरा सी नरमी के बाद आता है
सर्द दिसंबर का महीना बहुत याद आता है

कोहरा की पहली आहट दिसंबर में
ठंडी हवाओं की है सरसराहट दिसंबर में

बारिश भी है कोहरा भी है नमकीन धूप है
ये महीना दिसंबर का यार सबसे अनूप है

भुला दो गमों को सभी सालभर के
हर लम्हों को जी लो यार जी भर के

रुलाता है जैसे आशिक सितमगर
यूं निकला है वैसे ये दिलकश दिसंबर

बदन पर जरा से कपड़े भी कम थे
कुहासे के फुहारे भी गलियों में कम थे

आयेगी कड़ाके की सर्दी इसके जाते
ठंडी रजाई होगी बेदर्दी इसके जाते

नफ़रत को...