...

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" गलतफहमी की गर्मी ! "
वह बेवकूफ थी फ़किरा
या कभी किसी ने शायद
बताया नहीं उसको के
अंग्रेजी के fool हिंदी के
किसी full के उद्धारण हेतु
धारा किसी अब कानूनी भाषा
के आधीन होते है
या तो अब हो चुके थे
जहां अब हमारे रचईता के पास भी
उनकी जीवनसंगिनी के हरकत से
श्राप देने के अलावा फ़किरा
अब कोई दुसरा कोई न चारा बचा था
आदम जो अपने परमेश्वर के जैसा
छत्र छाया में तरसा पीरोया
रचा और बनाया गया था
हमारे ईश्वर को भी शायद
हमारे Womb से ऐ परमपीता सुन
woMen बनाने से पहले यह पहेली
गर्मी जो जोत जलाती है
न रचता तो शायद यह दुनिया
किसी शवर्ग से सुन्दर की तूलना में
अल्पसंख्यकों के मुकाबले कम न होता
मगर सत्य के आगे मजबुर वो महारानी
जो दरासल उन सुनहरे अंगूरों की दिवानी थी
अब जब वह खट्ठे हो चुके थे
किसी फिजुल मेहनत ऐ मोहब्बत के
अलौकिक इंतजार में
उस जीभ से उसका
आलिंगन रसपान होता
मगर खुद एक बंदर फ़किरा का
किसी फ़रिश्ता तूल्य बन पाता
अगर आगे के बजाय पहले ही दाता
पिछवाड़े पुंछ लगा देता
भूख स्वाभाविक होती
अस्लीलता युं काम उत्तेजित न होता
सीतल एक अमरता के चौखट पे
जहां गर्भ कुछ ग्रंथों के मुताबिक
जो आसमानी कहलाते हैं
आदत सुधार लो सुन मेरी रानी
के गलतफहमी की गर्मी से कलयुग में
कुंवारा बाप बनता है अगर यहां कोई
Jesus फिर क्यों पैदा हुआ नहीं करते ?



© F#@KiRa BaBA