...

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तू मर्द भी क्या खूब है
गैरों से रिश्ता जोड़कर
अपनों से नाता तोड़ने चली
औरत ना हो ऐसी कभी
जो कहने लगे
तुम बैठे रहो लो मै चली
💪💪💪💪💪💪💪
kavi kahta hai mard ke liye
इज्ज़त ना हो फिर भी कहे
इज्ज़त हमारी खूब है
भूलकर सिकवे सभी
इक उम्मीद मन मै है कसे
दर्द अपना भूलकर
कहता रहा हरदम जिसे
फूल से नाजुक कली है वो
छांव में रखता है जिसे
धूप ना लग जाए उसे
जो मेरी महबूब है
और क्या लिख दूं मै तुझ पर
तू मर्द भी क्या खूब है
राजू राल