...

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ज़माना और मैं
मानता हूं ज़माने की ज़िद के आगे झुकना होगा,
पर मज़ा, ज़माने की बातें टालने में कितना होगा.

चाहे है ये ज़माना सबको एक ही सांचे में ढालना,
आएगा एक दिन जब इस चाहत से फ़ित्ना होगा.

लाखों की भीड़ चल रही है पहले ही इन राहों पर,
पामाल इन राहों का सफ़र अब और कितना होगा.

डरते डरते भी शामिल तो करना ही है किसी को,
देखें हाल ज़िंदगी का भला होगा कैसा, जितना होगा.

थे 'ज़र्फ़' पहुंचे जहां, रह गए वहीं के वो हो कर,
पर अभी हमें ना जाने चलना और कितना होगा.
©अंकित प्रियदर्शी 'ज़र्फ़'

फ़ित्ना- उत्पात, मुसीबत (trouble)
पामाल - पांव के निशानों से ढका हुआ, कुचला हुआ (with numerous footprints)
ज़र्फ - योग्य, लायक (deserving)
अर्ज़ किया है......
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