ज़माना और मैं
मानता हूं ज़माने की ज़िद के आगे झुकना होगा,
पर मज़ा, ज़माने की बातें टालने में कितना होगा.
चाहे है ये ज़माना सबको एक ही सांचे में ढालना,
आएगा एक दिन जब इस चाहत से फ़ित्ना होगा.
लाखों की भीड़ चल रही है पहले ही इन राहों पर,
पामाल इन राहों का सफ़र अब...
पर मज़ा, ज़माने की बातें टालने में कितना होगा.
चाहे है ये ज़माना सबको एक ही सांचे में ढालना,
आएगा एक दिन जब इस चाहत से फ़ित्ना होगा.
लाखों की भीड़ चल रही है पहले ही इन राहों पर,
पामाल इन राहों का सफ़र अब...