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सावन संग आस
घन घटा घुमर आई कारी बदरिया,
सावन के मेघ में लिपटी चुनरिया।
राह तकती अखियन,
बेसुध मन बिरहन।
बैरन बाट जोहती चंचल बिजुरिया,
बिजली की कंपन में मचलती पैंजनिया।
बूंदों में घुलती लाज, बहती कजरिया
बैरी हुई आस ठूंठ बंजर डगरिया।
परदेसी मोर जिया निर्मोही पियरिया,
झूमर के गीत संग झूमत आई भादरिया।
~शिल्पी
© S Kumar
सावन के मेघ में लिपटी चुनरिया।
राह तकती अखियन,
बेसुध मन बिरहन।
बैरन बाट जोहती चंचल बिजुरिया,
बिजली की कंपन में मचलती पैंजनिया।
बूंदों में घुलती लाज, बहती कजरिया
बैरी हुई आस ठूंठ बंजर डगरिया।
परदेसी मोर जिया निर्मोही पियरिया,
झूमर के गीत संग झूमत आई भादरिया।
~शिल्पी
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