बाबा के ख्वाबों की पेंसिल
#घरवापसीकविता
मीठी रोटी बनाया था अम्मा ने,
उस रोज,
वो आखिरी बार था,
जब मुझे उस खिड़की से बुलावा आया था,
वो आखिरी बार ही था,
मुट्ठी भर शरीर से,
पाव भर हिमात लगा के,
मैं कूद गई उस जंक लगी खिड़की से,
और विरासत में ले भागी,
वो पेंसिल,
जिसे मैं पिंसिन बुलाया करती थी,
अम्मा बाबा के बड़े ख्वाबों को,
अपने छोटे हाथों से सजाया करती थी,
पर बहक गई सहपाठियों की बातों में,
भाग गई अम्मा के...
मीठी रोटी बनाया था अम्मा ने,
उस रोज,
वो आखिरी बार था,
जब मुझे उस खिड़की से बुलावा आया था,
वो आखिरी बार ही था,
मुट्ठी भर शरीर से,
पाव भर हिमात लगा के,
मैं कूद गई उस जंक लगी खिड़की से,
और विरासत में ले भागी,
वो पेंसिल,
जिसे मैं पिंसिन बुलाया करती थी,
अम्मा बाबा के बड़े ख्वाबों को,
अपने छोटे हाथों से सजाया करती थी,
पर बहक गई सहपाठियों की बातों में,
भाग गई अम्मा के...