...

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अंधेरी रातें
अंधेरी रातें मुझे यूँ भाती बहुत हैं,
यादें जब उनकी रुलाती बहुत हैं।

बेबसी की इक़ इंतिहा गुजरती है,
बात दिल की वो, छुपाती बहुत है।

न दुख हो हमको, उनकी जफ़ा का,
प्यार झूठा सही, वो जताती बहुत है।

आज याद मेरी बहुत आयी उनको,
मिले खुशी हमको, बताती बहुत हैं।

नाम भी शायद न याद अब उनको,
आईना मुझको मेरा दिखाती बहुत है।
© विवेक पाठक