...

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खामियाँ
यूं तो खामियाँ बहुत है मुझमे.....
बेबाक बोलती हूँ..
एहतियात ज़रा कम बरतती हूँ,
मंजिल की राह मे चलने से पहले...
ज़रा कम सोचती हूँ,
आडे- टेढ़े रास्ते होते है मजिंलो के अक्सर....
इसलिए कभी- कभी शायद थोड़ा फिसलती हूँ,
पर hunnnnyyyyyyy....
ठोकर खाने से फिसलती हूँ,
नियत से नही............,
बेशक हजारो खामियाँ है मुझमे..
जरा एक बार महसूस करके देखिए न
क्या पता कुछ खूबसूरती नज़र आ जाए मुझमें

© shafika singh