...

23 views

आवाज़
बेड़िया है जो यह समाज की,
तुम क्यों इससे डरती हो?
नम इन आँसुओ को खुदमे क्यों छुपाती हो।

कि हा सुना है मैंने तेरी पायल की छन छन।
वो माथे मैं सजा कुमकुम का तिलक।।
यू खुदको निहारती आईने मैं मुस्कुराती,
तो फिर क्यों घूम हो जाती आपने ही ख़यालो मैं।

क्या जरूरी है,
हर बार खुदका ही मन मरना?
ये (samzoto) की बगिया मैं नंगे पाव उतरना।
आखिर कब तक तुम खुदकी कुर्बानी देती रहोगी?
तुम स्त्री हो जनाब,
आखिर कब तक अग्नि की परीक्षाओ मैं अकेली उतरती रहोगी?

सती नही तुम काली बनो,
कभी तो खुद के लिए भी जियो।
जब दबने लगे आवाज़ तुमारी,
तुम खामोश रहना छोर,
खुद के लिए आवाज़ उठाओ।
पिंजरे में कैद रहना छोड़ तुम उची उड़ान चुनो।

बोझ नही तुम सोना हो,
अरे भटके मुसाफ़िर को घर पहुचा सको,
ऐसा ध्रुव का तारा हो।
तुम सरस्वती तुम ही लछमी,
तुम्ही संसार की माता विश्व कल्याणी।
फिर क्यों तुम खुद के लिए खड़ी रहने से कतराती हो?
तुम स्त्री हो ज़नाब कभी तो खुद के लिए भी जियो।

देखे जो तुम्हे बुरी नज़रो से,
उनका तुम सर्वनाश करो।
खामोश रहना छोर,
तुम खुदकी आवाज़ बनो।
तुम स्त्री ज़नाब कबी तो खुद के लिए भी जियो।





© Priya kumari