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शिव की परिभाषा
विष का गागर कंठ मे जमाए
डमरू की ध्वनि विराजमान हो जाए
मस्त मलंग मदहोश अपनी धुन में चलता
आक्रोश का सागर अपनी भीतर समाए

ज्ञान का भंडार कला का देवता
शक्ति का प्रतीक प्रसाद बेल का पत्ता
कोई कहता है भोलेनाथ कोई कहता शिवाय
दुनिया का मोह छोड़ पर्वत में समाए

नाग है इसकी शान कार्तिक और गणेश है गौरव
आंख तीसरे जब खोले तो करता है यह तांडव
रावण को सर्वज्ञानी है इसने बनाया
हर मनुष्य के भीतर है यही समाया

आरंभ भी है और अंत भी ये
देवों का देव और स्वर्ग भी ये
भूत प्रेत बेताल है इसके साथी यार
भांग धतूरा का प्रेमी सृष्टि के अस्तित्व का सार

मयूर पराशर

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