...

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तेरे आने की खुशी में
न जाने कब आयेगी मेरी जन्नत इन तड़पती बाहों में।
तेरे आने की खुशी में हमने दिल बिछाया है राहों में।

फूलों-ओ-कलियों से राह का कतरा-कतरा सजाया है,
राहिल खुद ही जाना चाहता है मंज़िल की पनाहों में।

ना देखने की आरजू ही रही, ना कुछ पाने की जुस्तजू,
फ़लक भी फीका लगता है, चाँद बस गया निगाहों में।

पाक मुहब्बत कब रही इस ज़ालिम ज़माने की ज़द में,
प्रेम-डगर गर छूटी है तो सिर्फ बेमतलब की परवाहों में।

मुहब्बत एक आग का दरिया है और डूब कर जाना है,
फिर 'पागल' तू क्यूँ पड़ा है कुछ लोगों की सलाहों में।

© पी के 'पागल'