अब ख़ामोशी ही भाती है
कह दिया फ़साना इक उम्र का,
अब शब्दों की बनी भाषा नहीं सुहाती है,
वो हक़ीकत जो सच होकर भी सच नहीं,
कहीं ख़त्म ही न हो जाए,
इसलिए अब ख़ामोशी भाती है।
और कुछ नहीं तो मेरे प्यार का भरम ही बना...
अब शब्दों की बनी भाषा नहीं सुहाती है,
वो हक़ीकत जो सच होकर भी सच नहीं,
कहीं ख़त्म ही न हो जाए,
इसलिए अब ख़ामोशी भाती है।
और कुछ नहीं तो मेरे प्यार का भरम ही बना...