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ग़ज़ल
मैं तुझ में इतना पागल भी हो सकता हूँ
मैं बिंदी, चूड़ी, पायल भी हो सकता हूँ
तेरी यादों से घायल भी हो सकता हूँ
रफ़्ता रफ़्ता मैं पागल भी हो सकता हूँ
इक सूरत में जैसे दो सीरत होती है
मैं कालिख,या फिर काजल भी हो सकता हूँ
बच्चे तितली देख यहाँ आते हैं उनको
समझाओ के मैं जंगल भी हो सकता हूँ
ख़्वाब समझकर मुझको आखों में मत रखना
अश्कों की तरह मैं ओझल भी हो सकता हूँ
आप समंदर होकर भी कुछ न हैं जर्जर
मैं कतरा हूँ ,पर बादल भी हो सकता हूँ
© जर्जर
मैं बिंदी, चूड़ी, पायल भी हो सकता हूँ
तेरी यादों से घायल भी हो सकता हूँ
रफ़्ता रफ़्ता मैं पागल भी हो सकता हूँ
इक सूरत में जैसे दो सीरत होती है
मैं कालिख,या फिर काजल भी हो सकता हूँ
बच्चे तितली देख यहाँ आते हैं उनको
समझाओ के मैं जंगल भी हो सकता हूँ
ख़्वाब समझकर मुझको आखों में मत रखना
अश्कों की तरह मैं ओझल भी हो सकता हूँ
आप समंदर होकर भी कुछ न हैं जर्जर
मैं कतरा हूँ ,पर बादल भी हो सकता हूँ
© जर्जर
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