...

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तुम्हारा फर्ज़ है
ये कविता मैने 2021 मे अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस पर लिखी थी

बढ़े चलो तुम पथ पे अपने
लाख चाहे मुश्किले आयें
गर वीर हो योद्धा तुम
तो चुनौतियाँ आया ही करती हैं

मत घबराओ उनसे तुम
फिर चाहे कोई साथ दे ना दे
तुम खुद की विशाल ढाल बनो
पर मुश्किलों के सीने में

विजयश्री का ध्वज गाड़ना
तुम्हारा फ़र्ज़ है
हाँ फ़र्ज़ है

तुम फूल हो चमन के
पूरा खिलना तुम्हारा कर्ज़ है
फिर चाहे आंधी आये या गिरे बर्क़
खुश्बू फैलाना तुम्हारा फ़र्ज़ है.....!!

तुम लहर हो सागर की
जो नौकों को बहा देती है
जो हल्की सी हलचल में सुनामी ला देती है
फिर चाहे आये तूफ़ान या ना भी आये
तुम हवाओं का रुख करो

पर साहिल में आना और लौट जाना
तुम्हारा फ़र्ज़ है......!!!
हाँ फर्ज़ है

तुम मेघ हो वर्षा के
जो बंजर भूमि मे प्राण फूँकते हैं
जो बिना जलन के एक समान जल देते हैं
फिर चाहे सागर ही ना दे जल तुम्हे
तुम दरिया से फरियाद करो

पर पूरी मानवता की प्यास को बुझाना
तुम्हारा फ़र्ज़ है........!!!!
हाँ फर्ज़ है

तुम अंगार हो अग्नि की
जो ताप से लोहे को भी झुलसा के पिघला देती है
जो सोने को भी तपा के और खरा बना देती है
फिर चाहे ईधन ही ना दे शक्ति तुम्हे
तुम चिंगारी को याद करो

पर अपनी प्रचंड अग्नि में भस्म कर पवित्र कर देना
तुम्हारा फ़र्ज़ है.....!!!!!
हाँ फर्ज़ है

तुम बाज़ हो परिंदों के
जो पूरी शान से उड़ते हैं
जो लम्बी उड़ान पंखों नहीं हौसलों से भरते हैं
फिर चाहे काली घटा ही क्यूँ ना छा जाए
तुम पंखों को सीधा कर लो

पर बादलों का सीना चीर के उनके उपर उड़ना
तुम्हारा फ़र्ज़ है.....!!!!!!
हाँ फर्ज़ है

सूर्य की तरह डूबना
पर डूब के उगना
तुम्हारा फ़र्ज़ है।

चाँद की तरह मेघों में छिपना
पर छिप के चमकना
तुम्हारा फ़र्ज़ है।

तारों की तरह टूटना
पर टूटते हुए भी टिमटिमाना
तुम्हारा फ़र्ज़ है ।


फ़र्ज़ है हाँ फ़र्ज़ है....
इन सारे फर्ज़ों को अदा करना भी
तुम्हारा फ़र्ज़ है...।
© ✍🏻sidd