...

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बहता चल
तू न थकना कभी, तू न रुकना कभी
तू निरंता बहता चल, बस आगे बढ़ता चल
अपने प्रवाह से चीर दे हिमालय का सीना
न रुक कहीं, न थाम कहीं...

अपने तेज वेग से अपनी राह खुद बना
असफलता की भस्म को तू माथे से लगा
राह में मिली ठोकरों की मुंडमाला बना
और जो मिला सबब उसे सीढ़ियां बना
समाज की बेड़ियों को तू जड़ से उखाड़
चेतना के प्रकाश से मंजिल को दिशा दिखा
तू मत थकना कभी ,तू मत रुकना कभी...

इरादों को तू फौलादी बना
मेहनत से तू अपने स्वेद का नल खोल दे
न हार का डर,न जीत का जश्न
इन सब को तू दूर रख
कल-कल करता ,चल-चल करता
बस बहता चल,बस बढ़ता चल...







© रोबिन ठाकुर