...

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रे सुशासन
अब जागा है तू कब जागेगा
खा जायेगा सब कुछ कुशासन
रे सुशासन।
सत्तर सालों से बाट जोह रहा ,देश
राजनीति का बदल चुका है भेश
रे सुशासन।
बिक चुकी है नीतियां,टूटे हुए नियम
सो रही है जनता ,जाग रहा है भ्रम
रे सुशासन।
दलालों की यारी है चोरों की साझेदारी है
गुंडों का डंका है डकैतों की जागिरदारी है
रे सुशासन।
नोट का वोट हो गया है दारु का है वादा
कर्तव्यों की अर्थी है आधिकारों का है सादा
रे सुशासन।
जाग नींद से जाग, जा सुशासन
वरना हर घर में होगा दुशासन
रे सुशासन ।
कर दे नाश हर बैरी बुराई का
क़त्ल कर दे दुष्ट कुशासन का
रे कुशासन।










© Yogendra Singh