...

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इंसानियत मजबूरी नहीं है
#मजबूरी
झूठ नहीं मजबूरी है,
तुम जानों क्या क्या ज़रूरी है;
नंगे बदन की भी अपनी धुरी है,
ये भी सच है हर ओर दूरी ही दूरी है ,
चाँद की यात्रा कर चुका मानव
फिर भी इंसान से बहुत दूरी है ,
क्या जीतेगा कोई दिल उस रब का
जब इसके बनाये बन्दों से छलकती दूरी है
नंगे बदन को कपड़ा दिया है
उजड़े मन को भी इंसानियत जरूरी है