इंसानियत मजबूरी नहीं है
#मजबूरी
झूठ नहीं मजबूरी है,
तुम जानों क्या क्या ज़रूरी है;
नंगे बदन की भी अपनी धुरी है,
ये भी सच है हर ओर दूरी ही दूरी है ,
चाँद की यात्रा कर चुका मानव
फिर भी इंसान से बहुत दूरी है ,
क्या जीतेगा कोई दिल उस रब का
जब इसके बनाये बन्दों से छलकती दूरी है
नंगे बदन को कपड़ा दिया है
उजड़े मन को भी इंसानियत जरूरी है
झूठ नहीं मजबूरी है,
तुम जानों क्या क्या ज़रूरी है;
नंगे बदन की भी अपनी धुरी है,
ये भी सच है हर ओर दूरी ही दूरी है ,
चाँद की यात्रा कर चुका मानव
फिर भी इंसान से बहुत दूरी है ,
क्या जीतेगा कोई दिल उस रब का
जब इसके बनाये बन्दों से छलकती दूरी है
नंगे बदन को कपड़ा दिया है
उजड़े मन को भी इंसानियत जरूरी है