...

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चहकने लगी हूँ मैं...
हर रोज यूँ तनहा ही संवरने लगी हूँ मैं
नाचूं हूँ, गाऊँ, क्या क्या ना करने लगी हूँ मैं..

अंदाज में शोखी भी आ गई है, ख़ुद ब ख़ुद
हँसती हूँ, बोलती हूँ, चहकने लगी हूँ मैं..

कहते हैं लोग, मौसम ए उम्र ए बहार है
गुल जाफरी सी खिल के महकने लगी हूँ मैं..




© Rajnish Ranjan