...

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दुनिया झूठ की
हर दिन सच को , झूठ के पैरों तले रौंदा गया,
एक एक इंच उसकी कब्र को,रोज़ाना खोदा गया,

फ़िर दफ़न कर दिया उसको ,दीन-ओ-ईमान संग,
फरेब की इस दुनिया में ,अब झूठ के बिखरे हैं रँग,

हर कोई ख़ुश है ,ये दुनिया झूठ की अपनाकर,
कोई नही है कम किसी से , हिस्सेदारी है बराबर,

दो पल की खुशी पाने को ,चैन उम्रभर का गंवा दिया,
सच की दौलत फूँक कर ,झूठ का सिक्का चला दिया,

झूठ ,कपट और बेईमानी की , भूमिका संदिग्ध है,
एक नही दो चार नही ,आधी दुनिया इसमें लिप्त है,

कहाँ थमेगा तांडव जाकर, झूठ की कारगुज़ारी का,
रोक लो ये झूठ का बाना, रूप लेले न महामारी का।।

-पूनम आत्रेय