...

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चले जाना अच्छा है!
तय की हमने दूरी अब,
दूरी है मजबूरी अब।
मजबूरी का नाम है गांधी,
दुनिया क्यों है भूली बैठी,
अंधेरे में भी चले है आंधी।
इस आंधी का क्यों पार नहीं,
क्योंकि दोस्त अब परिवार नहीं।
अकेलेपन से ऊब गया हूं,
हंसता सूरज था,शायद डूब गया हूं,
भूल‌ गया हूं उस दिन को अब,
खुलकर हंसता था मैं जब।
जिस दिन मैं कुछ बन जाऊंगा,
एक नया सूरज लाऊंगा,
पूरी दुनिया को चमकाऊंगा,
मुझ...