...

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चले जाना अच्छा है!
तय की हमने दूरी अब,
दूरी है मजबूरी अब।
मजबूरी का नाम है गांधी,
दुनिया क्यों है भूली बैठी,
अंधेरे में भी चले है आंधी।
इस आंधी का क्यों पार नहीं,
क्योंकि दोस्त अब परिवार नहीं।
अकेलेपन से ऊब गया हूं,
हंसता सूरज था,शायद डूब गया हूं,
भूल‌ गया हूं उस दिन को अब,
खुलकर हंसता था मैं जब।
जिस दिन मैं कुछ बन जाऊंगा,
एक नया सूरज लाऊंगा,
पूरी दुनिया को चमकाऊंगा,
मुझ जैसे भी आबाद करुंगा।
हर बार मैं मंजिल से मुंह की खाता हूं,
लड़ता हूं हर बार खुद से हारता हूं,
शायद हर बार मैं दम कम मारता हूं,
शायद इसीलिए मैं खुद को दुत्कारता हूं।
अब मेरा चले जाना ही अच्छा है,
इस ढलते सूरज का डूब जाना ही अच्छा है,
मर गया हूं सच में अंदर से,
अब बाहर से भी मर जाना अच्छा है।
मैं जाऊंगा तो आंखों से आंसू मिलना
मुश्किल होगा,
मैंने शायद किसी के दिल को न छुआ होगा,
पक्की बात है मैं बूरा आदमी हूं,
या मेरे काले रंग, अक्खड़ बातों से तुम्हें बूरा
लगा होगा।
जब मैं नरक चला जाऊंगा,
सब आबाद हो जाएगा,
दुनिया हंस पड़ेगी,
सब गुलजार हो जाएगा।
-------------राम