बुद्धि और कल्पना
विकास की इस अंधी दौड़ में , ये कहां हम आ गए ।
घर पैसा तो बना लिया , पर वो अपने कहां गए ।
जो कभी रहते थे साथ - साथ वो अब हमसे दूर हो गए ।
यह पैसे का नशा , यह जीवन की रेस में सबको नीचे गिरा कर खुद पहले मंज़िल पर पहुंचने की होड़ में ना जाने हम इतना आगे निकल गए की आए कहां से थे यह सब भूल गए । फिर पता चला कि...
घर पैसा तो बना लिया , पर वो अपने कहां गए ।
जो कभी रहते थे साथ - साथ वो अब हमसे दूर हो गए ।
यह पैसे का नशा , यह जीवन की रेस में सबको नीचे गिरा कर खुद पहले मंज़िल पर पहुंचने की होड़ में ना जाने हम इतना आगे निकल गए की आए कहां से थे यह सब भूल गए । फिर पता चला कि...