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बुद्धि और कल्पना
विकास की इस अंधी दौड़ में , ये कहां हम आ गए ।
घर पैसा तो बना लिया , पर वो अपने कहां गए ।
जो कभी रहते थे साथ - साथ वो अब हमसे दूर हो गए ।

यह पैसे का नशा , यह जीवन की रेस में सबको नीचे गिरा कर खुद पहले मंज़िल पर पहुंचने की होड़ में ना जाने हम इतना आगे निकल गए की आए कहां से थे यह सब भूल गए । फिर पता चला कि बुद्धि से ज़्यादा महत्वपूर्ण कल्पना शक्ति है ।

फिर अपने विवेक अपनी अंतरात्मा को जगा कर , अपनी कल्पना शक्ति के अनरूप कार्य किए । खुद को ही वास्तविकता के दरवाज़े से अपनी ही झलक दिखाई , खुद को खुद के ही आयने में देख सकूं कुछ ऐसी अपनी शख्सियत बनाई ।

पाने की लालसा बहुत थी इस जीवन में ,फिर अपनी कल्पना शक्ति को जगा कर औरो के साथ मिल कर कुछ ऐसी अपनी शख्सियत बनाई ।
आज मैं हूं और मेरे अपने ज़्यादा कुछ नहीं है पर बहुत कुछ पाने की दिल में एक लालसा जगाई ।