...

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सच और झूठ



किसी के लाख छिपाने से भी "
कभी छिप नही पाएगा....
सच के आगे झूठ ज्यादा दिन तक,
टिक नहीं पाएगा,,,,!!

सच को फसाने के लिए झूठ "
ना जाने कितने ही जाल बिछाएगा....
लेकिन सच जाल में फंसकर भी,
खामोशी से मुस्कुराएगा,,,,!!

दिखाकर सच की छोटी छोटी खामियां "
उन खामियों को झूठ बड़ा बनाएगा...
उसके बाद भी जो नही होगा सच गलत साबित
झूठ बेवजह के मुद्दे बाहर लाएगा,,,,!!

हर बार खुद को ही बेक़सूर बताकर "
झूठ कहानी पर कहानी सुनाएगा....
सच रहेगा हमेशा ही बेपरवाह,
झूठ की कहानी को ही हक़ीक़त बताएगा,,,,,!!

फसाकर सच को बेवजह झूठ पता नही "
कब तक और कैसे सुकून से रह पाएगा....
खुद को सही साबित करने की कोशिश में,
झूठ खुद के बिछाये जाल में ही फंस जाएगा,,,,!!

घोलकर अपनी बातों में मिठास "
झूठ बहुत संस्कारी बन जाएगा....
देकर कड़वी बातों का जवाब कड़वाहट से,
सच हमेशा ही बदतमीज़ कहलाएगा,,,,,!!

करके सच को गलत साबित झूठ खुद "
अंदर ही अंदर डरपोक बन जाएगा......
सच को कहाँ जरूरत होतीं सबूतों की,
एक दिन झूठ ही इस बात से पर्दा उठाएगा,,,,!!