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जीवन का सच (मुक्तक)
समंदर सोच का उमड़े, लहर मन की उठे जब जब।
समझ लेना करम अपना, बना पहला खुदा है तब।
भरोसा हो स्वयं पर जब, सकल संसार है अपना,
बदल लो सोच सब अपनी, बताओ सोचना है कब?

समझ लो आत्म का यह सच, खुदा खुद में समाया है।
जुड़ा यह प्राण है जब तक, तभी तक मोह माया है।
धरा पर प्रेम-नफ़रत का, सभी में सच यहां जीवित,
तुम्हारी जिंदगी जब तक, तभी अपना पराया है।

सकल निर्माण मानव का, यहां मां में हुआ है जब,
सभी गुणधर्म सारे कर्म उस निर्माण से है अब।
समूची सृष्टि कल्पित कर, जगाया ज्ञान भीतर में,
सनातन हैं सभी मानव, समझ यह बात आयी तब।

मरम अपना समझना तब, करम होगा उदित भीतर,
धरम जीवन संचारित है, समझ यह बात आए गर।
यहां इक धर्म माता का, सुखद संतान को जन्में,
करम ही धर्म वाला मर्म है, समूचा है यही इक घर।

© Dr.parwarish