...

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लाज़िम सवाल कितने
मुसलसल मुस्कराने पर लाज़िम सवाल कितने
अपनी सादगी ने भी किए हैं कमाल कितने

बेपरवाह हो गई राहें वक्त के अभाव में खो गया मैं
देखें जो अगर मुड़कर पीछे तो हैं भूचाल कितने

झूठ कह कर वह देखों तो सीना ताने चला
सच कहने वाले हों गए आखिर निढाल कितने

दर्द के इन्तहा आंसूओं की नदी जख्मों के निशां
तजुर्बा पाने में ज़िन्दगी तेरे, गुज़र गए साल कितने

खुद को क्या हीं समझते वक्त के सितमगर शहंशाह
जीतकर जंग देखो ज़रा तुम्हारे हाथ हैं लाल कितने
© पं.रोहित शर्मा
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