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असली शिष्य की पहचान
प्रत्येक शिष्य की सबसे पहली जिम्मेदारी यही बनती है, कि वह शिक्षा प्राप्त कर और अपने गुरु के वचनों को समझकर अपने पैरों पर जल्द से जल्द खड़ा हो जाए, जो शिक्षा में भी अधूरा रह जाता है और गुरु के वचनों को भी नहीं समझ पाता वह भटक जाता है। असली शिष्य है ही वही जो गुरु को जल्द से जल्द यह दिखा दे कि वह समझ गया है। वह अपने पाँवों पर खड़ा हो गया है। शिष्य की सफलता ही गुरु की जीत है। इसलिए शिष्य को चाहिए कि वह जिंदगी जीने का जुगाड़ जल्द से जल्द कर ले ।
बाकी बातें बाद में होती रहेगी।
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