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सत्य पथ
सत्य पथ
आदि, अन्त और पथ वही है
उसी के रास्ते जीत
साहस बढ़ाओ चलने का उस पथ, जिसे आत्मा गई है भूल।।

अंतर्मन तेरे अंदर बैठा
सच्ची जग की बताएं रीत
एकांत में जा महसूस करो बस, तभी हो उससे प्रीत।।

कर्म किए बिन रह नही सकता
बस कर्म करने में रीझ
कर्म ही दाता कर्म विधाता, बस कर्म से मिले हर जीत।।

पक्षियों की वाणी स्वर घोलती
सदा श्रृद्धा-आस्था को ले गमगीन
पेड़-पौधे सभी जीव-जंतु भी, प्रकृति भी उसमें लीन।।

अष्टांग मार्ग इस जग को दिखाकर
बढ़ चलो तुम वीर
कर्तव्य पथ जो बने वो तेरा, धर्म की वही से बनती नींव।।

सारे रास्ते वही को जाते
समझते न इसको नीच
कर्ता-धर्ता बस वही एक है, उसके मार्ग बढ़े रणधीर।।

बड़ी श्रद्धा से प्रार्थना उत्पन्न होती
ये धन्यवाद की चीज़
शुक्रिया सदा उसे करते रहना, जो सुख-दुःख में निभाएं प्रीत।।

राम सुझाता राम मनाता
राम ही करें सब ठीक
करता-करता मर जायेगा, दुनियाँ कभी न बनें मनमीत।।