zindagi
कलम ये मेरी आज, यूं
शब्दों से खेली है।
ये जिंदगी भी जाने कैसी,
जानी अनजानी पहेली है।
जन्म मरण के बीच सफर में,
बस एक ठेलम ठेली है।
किसी के पास आसरे को छत नहीं,
पास किसी खाली पड़ी बहोत हवेली है।
बेशक है वो मन तुम्हारा मोहने वाली,पर जाना मेने
इस दुनिया की हर एक चीज मटमेली है।
एक यारी की दास्तां सुनलो हमसे भी, ये
जिंदगी भी मौत की ही सहेली है।
रहे चकित देख हालत खुद मेरे कमरे की ,...
शब्दों से खेली है।
ये जिंदगी भी जाने कैसी,
जानी अनजानी पहेली है।
जन्म मरण के बीच सफर में,
बस एक ठेलम ठेली है।
किसी के पास आसरे को छत नहीं,
पास किसी खाली पड़ी बहोत हवेली है।
बेशक है वो मन तुम्हारा मोहने वाली,पर जाना मेने
इस दुनिया की हर एक चीज मटमेली है।
एक यारी की दास्तां सुनलो हमसे भी, ये
जिंदगी भी मौत की ही सहेली है।
रहे चकित देख हालत खुद मेरे कमरे की ,...