ग़ज़ल
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कभी दुश्मनी कभी दोस्ती इसे दिल से अपने निकाल दे
मिले एक लम्हा जो प्यार का तू उसी में सदियां गुजार दे
वो चला गया है जो रूठ के चलो लाएं उसको मना के फिर
कोई बोझ दिल से उतारकर उसे बाजुओं का हिसार दे
ये...
कभी दुश्मनी कभी दोस्ती इसे दिल से अपने निकाल दे
मिले एक लम्हा जो प्यार का तू उसी में सदियां गुजार दे
वो चला गया है जो रूठ के चलो लाएं उसको मना के फिर
कोई बोझ दिल से उतारकर उसे बाजुओं का हिसार दे
ये...