...

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दिल ए चराग़ाँ
मेरा इश्क़ बड़ा बदनाम हुआ करता था,
भरे आंसुओं से जाम का प्याला
हर रोज़ ख़ाली हुआ करता था,
जज़्बातों का आलम ये था सनम
कि हर रोज़ पीकर भी दिल
बेहद भारी हुआ करता था,
बेतहाशा खूबसूरत हुआ करती थी
वो ख़ामोश शाइस्ता महफिलें,
जिनमें शामिल कर ख़ुद को
मेरा दिल बेआबरू हुआ करता था,

मिन्नतें बेसब्र अल्फाज़ों की थी,
दुआ ये ज़हरीला साँस किया करता था,
तुझे पाने की जुस्तजू में जब ज़ेहन
दो घूंट और चढ़ा लिया करता था,
बिस्तर सलवटी यादों का था,
ख़्वाब उन ज़िल्लत भरी रातों का था,
मेरा क्या था????
कुछ भी तो नही,
बस फितूर इस दिल-ए-चराग़ाँ का था..!!
© Tarana 🎶