है जो सुनने की चाह तुम्हें
है सुनने की जो चाह तुम्हें
अधरों से कैसे कहूं भला
मौन बने अभिव्यक्ति जब
भाषा का तब कुछ काम नहीं
जिस बात से मैं अनभिज्ञ बहुत
उसमें हो अति पारंगत तुम
अस्वादान...
अधरों से कैसे कहूं भला
मौन बने अभिव्यक्ति जब
भाषा का तब कुछ काम नहीं
जिस बात से मैं अनभिज्ञ बहुत
उसमें हो अति पारंगत तुम
अस्वादान...