...

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विगत वर्ष को भूलकर,
विगत वर्ष को भूलकर,
तुम आए हो पंछी इस नवल ऋतु के आंगन में,
तुम यूं ही न समझना पराया उसे।

धूप छांव की कसौटी पर,वह तुम्हें निखार गया है।
विगत स्मृति का यह स्वर्ग तुम,
पंखों में भरकर अभिनव में उड़ना।

हे किशोर।नित असीम वेला का दर्पण तुम।
हे शिक्षा के स्वरूप तुम। वंदन तुम्हारा.

@kamal