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इंसानियत
जाने क्यूं , अब शर्म से ,चेहरे गुलाब नहीं होते ।
जाने क्यों अब वो फरिश्ते नदारत नहीं होते ।
जिनको हम कभी दादी नानी के किस्से कहानियों में सुना करते थे , आज वो क्यों कही दिखाई नहीं देते ।

अब पालघर में दो साधुओं की हत्या ही ले ले , क्यों तब हमें हमारा ज़मीर आवाज़ नहीं देता । क्या वो हमारे जाती या धर्म के नहीं थे , इसलिए हमने किसी को हत्या करने से उधर रोका नहीं था ।

निर्भया भी किसी की बेटी थी , क्या उन दरिंदो की खुद की मां बेटी नहीं थी । वो भी चीखी होगी , वो भी चिलाई होगी उसके भी कुछ अरमान कुछ सपने होगे । क्या अब भी हम मूक बधिर ही बने रहेंगे , वो एक सीता का ज़माना था , वो द्रोपदी के लिए किसी कृष्ण को आना पड़ा था ।

आज हम भी यही बोलते है देखा हर तरफ तो , इंसानों की ही सूरत है फिर भी देखो धरती को , इंसानियत की ज़रूरत है । हम कृष्ण ना सही पर एक इंसान तो बन ही सकते है , एक पालन हार ना सही पर एक रक्षक तो बनी सकते है ।

पापा की परियों को भी अब खुले आसमा में उड़ने का हक है , कब तक वो इस डर से घर में रहेगी । कहीं से तो अब बदलाव की जरूरत है , इस भारत को अब नई भारत की जरूरत है ।