gazal
नाजुक गजल भी बाजार में, बाजारू हो जानी थी।
राह कलम की भी पेट से होकर जानी थी।।
इत्तेफाक नहीं था, तेरे दुपट्टे का गिर जाना।
सारी शिद्दत से मैंने, नजरें तुझ पर तानी थी।।
मैं लिखता...
राह कलम की भी पेट से होकर जानी थी।।
इत्तेफाक नहीं था, तेरे दुपट्टे का गिर जाना।
सारी शिद्दत से मैंने, नजरें तुझ पर तानी थी।।
मैं लिखता...