माया
माया
घनघोर जंगल फैला है,
पंथी को मिलता धाम नहीं,
मन भी तो सबका मैला है,
कहीं भी अब आराम नहीं।
सर चढ़ कर बोले है माया,
चारों ओर फैला जंजाल है,
खोखला जीवन न भाया,
धनवान भी यहां कंगाल है।
अंतर्मन से दूर भागते,
भोक विलास में डूबे हम,
अज्ञान में हैं सुख मांगते,
खुद को मूर्ख बनाते हम।
जब तक है अज्ञान की माया,
ये पीड़ा तब तक नहीं थमेगी,
ज्ञान जिसने न पाया,
उसकी नाव पार नहीं लगेगी।
© Musafir
घनघोर जंगल फैला है,
पंथी को मिलता धाम नहीं,
मन भी तो सबका मैला है,
कहीं भी अब आराम नहीं।
सर चढ़ कर बोले है माया,
चारों ओर फैला जंजाल है,
खोखला जीवन न भाया,
धनवान भी यहां कंगाल है।
अंतर्मन से दूर भागते,
भोक विलास में डूबे हम,
अज्ञान में हैं सुख मांगते,
खुद को मूर्ख बनाते हम।
जब तक है अज्ञान की माया,
ये पीड़ा तब तक नहीं थमेगी,
ज्ञान जिसने न पाया,
उसकी नाव पार नहीं लगेगी।
© Musafir